दिल्ली की आख़िरी ट्रेन — एक अधूरी मोहब्बत की वापसी
कभी-कभी ज़िंदगी हमें वहीं ले जाती है जहाँ से हम भागे थे।
हम सबकी ज़िंदगी में कोई न कोई "अर्जुन" होता है। एक ऐसा इंसान जो हमें समझता है, प्यार करता है — लेकिन जब हम खुद को नहीं समझते, तो उस प्यार की कदर नहीं कर पाते।
आज की कहानी है प्रिया की… और उसकी दिल्ली वापसी की।
🌃 भाग जाना आसान था
पाँच साल पहले, प्रिया ने दिल्ली और अर्जुन — दोनों को छोड़ दिया था।
वो ज़िंदगी में कुछ बड़ा करना चाहती थी। करियर, आज़ादी, पहचान — सब कुछ चाहिए था। अर्जुन की किताबों की दुकान, उसकी सादगी, उसका ठहराव — सब कुछ एक बोझ जैसा लगने लगा था।
और फिर, एक रात वो ट्रेन में बैठ गई… बिना बताए।
💌 एक अधूरा ख़त
वक़्त बीतता गया। प्रिया ने बहुत कुछ पाया — लेकिन दिल में कुछ खोखला रह गया। अर्जुन की वो मुस्कान, उसकी आँखों में छिपी उम्मीद — वो सब अब किसी और शोर में गुम हो गए थे।
एक दिन, अचानक उसने एक ख़त लिखा:
"अगर अब भी तुमने वो पुरानी कविता की किताब संभाल कर रखी है… मैं लौट रही हूँ। अगर तुम चाहो तो… फिर से शुरुआत कर सकते हैं।"
लेकिन वो ख़त कभी भेजा नहीं गया।
🚉 स्टेशन पर इंतज़ार
आज प्रिया उसी स्टेशन पर खड़ी है। वही पुरानी दिल्ली की ठंडी हवा, वही इंतज़ार। ट्रेन आने वाली है — और दिल की धड़कनें तेज़।
वो नहीं जानती अर्जुन अब कहाँ है। शायद वो आगे बढ़ गया हो… या शायद आज भी इंतज़ार कर रहा हो।
लेकिन एक बात तय है — इस बार प्रिया भाग नहीं रही। वो वापस आई है… एक जवाब के लिए, एक closure के लिए… या शायद एक नई शुरुआत के लिए।
💭 क्या कभी बहुत देर हो जाती है?
हम सबके जीवन में कुछ रिश्ते अधूरे रह जाते हैं। लेकिन कभी-कभी, एक ख़त, एक सफ़र, या एक आख़िरी कोशिश… उन अधूरी कहानियों को मुकम्मल बना सकती है।
तो अगली बार जब आप किसी “दिल्ली की आख़िरी ट्रेन” पर हों — सोचिए, कहीं आप भी किसी अधूरे प्यार से मिलने तो नहीं जा रहे?

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